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आज महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि है, इतिहास में सदा के लिए अमर हो गया भारत माँ का वीर लाल

राष्ट्र के महानायक भारतवर्ष के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी केसरिया के स्वाभिमान हिंदुआ सूरज महाराण प्रताप जी के 425वें स्वाभिमान बलिदान दिबस पर कोटि कोटि नमन…इतिहास में सदा के लिए अमर रहेगा शूरवीर महाराणा प्रताप का नाम

भारत के महान योद्धा महाराणा प्रताप ऐसे शूरवीर थे, जिन्हें दुश्मन भी सलाम करते थे। वह मेवाड़ में सिसौदिया राजपूत राजवंश के राजा थे। इतिहास में उनका नाम वीरता और साहस के लिए सदा के लिए अमर है। वह अपनी वीरता और युद्ध कला के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने आखिरी सांस तक मेवाड़ की रक्षा की। उनका पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसौदिया था। उनका जन्म मेवाड़ में हुआ। बचपन में उन्हें कीका नाम से पुकारा जाता था।

महाराणा प्रताप को भारत का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी भी कहा जाता है। उनका कद 7 फीट 5 इंच था। उनके भाले का वजन 80 किलो था। उनकी दो तलवारें जिनका वजन 208 किलोग्राम और उनका कवच 72 किलोग्राम का था। युद्ध के समय महाराणा प्रताप दो तलवार रखते थे। यदि उनके दुश्मन के पास तलवार नहीं होती थी तो वह उसे अपनी एक तलवार देते थे जिससे युद्ध बराबरी का हो। हल्दीघाटी युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया। हकीम खां सूरी, हल्दी घाटी युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार थे।

इस युद्ध को 80 हजार की मुगल सेना के खिलाफ मात्र 22 हजार की सेना के साथ महाराणा प्रताप ने बहुत बहादुरी से लड़ा। इस युद्ध में न अकबर की जीत हुई और न ही महाराणा प्रताप की। हल्दी घाटी युद्ध के 300 साल बाद भी उस जगह से तलवारें पाई गईं। महाराणा प्रताप 20 वर्ष तक मेवाड़ के जंगल में घूमते रहे। मायरा की गुफा में उन्होंने कई दिनों तक घास की रोटियां खाकर वक्त गुजारा। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु पर अकबर भी रो पड़ा था। मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85 प्रतिशत मेवाड़ फिर से जीत लिया था।

उनका घोड़ा चेतक वफादारी के लिए जाना जाता है। महाराणा प्रताप के पास चेतक के साथ प्रिय हाथी रामप्रसाद भी था। महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लोहार जाति के हजारों लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन-रात उनकी फौज के लिए तलवारें बनाईं।

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