आज के ही दिन देश में अपातकाल की शुरुआत हुई थी. यह अपातकाल देश में जेपी द्वारा शुरू किये गये संपूर्ण क्रांति की वजह से लगाया गया था. इसकी शुरुआत बिहार के छात्रा आंदोलन से हुई थी. इस पोस्ट के साथ लगी तसवीर पटना की है, जिसमें आप एक जलती हुई बस को देख सकते हैं. मुमकिन है यह तसवीर आपको हाल के दिनों में सेना बहाली के नये नियमों के खिलाफ चले आंदोलनों की याद दिलाये, जिसमें इसी तरह बिहार के अलग-अलग कोने में ट्रेनें जलती नजर आयी थीं. मैं न जेपी आंदोलन की अराजक हिंसा को जस्टिफाई कर सकता हूं, न ही सेना के आंदोलन में फैली अराजकता को. मेरा विश्वास रचनात्मकता में है और मुझे लगता है आंदोलन भी रचनात्मक होने चाहिए.
मगर एक सवाल मुझे बार-बार परेशान करता है. हाल के दिनों में सेना बहाली के विरोध में जो हिंसक, अराजक आंदोलन हुई उसमें गिरफ्तार छात्रों के लिए तय किया गया है कि उनका चरित्र प्रमाण पत्र ऐसा बनेगा कि फिर वे किसी सरकारी नौकरी के योग्य न रहें. जबकि जेपी आंदोलन में जो छात्र शामिल हुए थे, उन्हें बिहार सरकार पेंशन देती है.
खुद नीतीश कुमार इसी जेपी आंदोलन की पैदाइश माने जाते हैं और वे इसे एक जायज आंदोलन भी मानते होंगे. क्या उस आंदोलन में उनके साथियों ने लगभग वैसी ही अराजक हिंसा नहीं की थी, जैसी हाल के सेना बहाली विरोधी आंदोलन में हुई. अगर हां, तो उनमें शामिल छात्रों के लिए न्याय का इतना सख्त पैमाना क्यों?
पुलिस विभाग में काम कर चुके मेरे एक मित्र कहते हैं, पुलिस भी अमूमन छात्र आंदोलनकारियों के खिलाफ नर्म रवैया अख्तियार करती रही है. उन्हें गिरफ्तार भी नहीं करती, थाने से ही छोड़ देती है. क्योंकि अब तक यह माना जाता रहा है कि छात्रों के आगे पूरा भविष्य है. मुमकिन है किसी नादानी में उसने ऐसा अराजक कदम उठाया हो. ऐसे में उसे उसके कैरियर की तमाम संभावनाओं से वंचित कर देना ठीक नहीं.
सम्बंधित ख़बरें
मेरे एक मामा जिन्होंने जेपी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी थी और मुंगेर के पोस्ट ऑफिस को जलाने में उनकी भूमिका बतायी जाती रही है. आज वे एक सरकारी नौकरी में हैं और प्रतिष्ठित जीवन जी रहे हैं. क्या यही विकल्प सेना बहाली के विरोध में आंदोलन कर रहे छात्रों को नहीं मिलना चाहिए.
और यह भी सोचिये कि अगर आप सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे छात्रों को तमाम सरकारी नौकरियों से वंचित कर देते हैं तो उनका भविष्य क्या होगा. मुमकिन है कि वे कोई नकारात्मक या अपराध का रास्ता अपना लें. सरकारों को राजनीतिक विरोधियों और सरकारी फैसलों के खिलाफ आंदोलन करने वालों के खिलाफ इतना सख्त नहीं होना चाहिए.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी सोचना चाहिए. वे सोच समझकर फैसला लेने वालों में हैं. उन्हें आज ही यह घोषित कर देना चाहिए कि इन छात्रों के भविष्य के तमाम रास्ते खुले रहेंगे. उन्हें सरकारी नौकरियों से वंचित नहीं किया जायेगा. यही इमरजेंसी औऱ जेपी आंदोलन को याद करने का सही तरीका है.