बिहार के कटिहार जिले में हिन्दू समुदाय के लोग दशकों से मोहर्रम मनाते आ रहे हैं। इसके पीछे की कहानी बहुत ही दिलचस्प है। ग्रामीण बताते हैं कि पूर्वजों द्वारा किए गए वादों का आज तक निर्वाह किया जा रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई की आने वाली पीढ़ी भी सांप्रदायिक सौहार्द्र और एक हिन्दू दोस्त के द्वारा एक मुस्लिम दोस्त से किए गए वादे को निभाने की यह परंपरा यूं ही बरकरार रखेगी।
बिहार के कटिहार में हसनगंज प्रखंड के मोहम्मदिया हरिपुर में हिंदू समुदाय के लोग विधि-विधान के साथ मोहर्रम मनाते हैं। लगभग 150 साल से भी अधिक पुराने इस परंपरा के पीछे की वजह बताते हुए स्थानीय ग्रामीण शंकर साह और राजू साह बताते हैं।
उनके पूर्वजों ने उस समय गांव के रहने वाले वकाली मियां से हर साल मोहर्रम मनाने का वादा किया था। उसी वादे को निभाते हुए आज भी मोहर्रम का जुलूस निकाला जाता है।
ग्रामीणों ने किया था वादा
ग्रामीण प्रतिनिधि सदानंद तिर्की के मानें तो उस समय जब सभी लोग बाहर से आकर गांव में बस रहे थे तो एकमात्र मुस्लिम घर वकाली मियां का था।
धीरे-धीरे बीमारी से उनके 7 बेटों का निधन हो गया। इस गम से जब वकाली मियां गांव छोड़कर जाने लगे तो उनसे ग्रामीणों ने वादा किया था कि इस मजार पर हमेशा मोहर्रम का आयोजन होता रहेगा।
देश की गंगा-जमुनी तहजीब और सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल
ग्रामीणों के पूर्वज छेदी साह द्वारा किए गए वादे को निभाते हुए मोहम्मदिया के ग्रामीण आज भी मोहर्रम मनाते हैं। यह देश की गंगा-जमुनी तहजीब और सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल है।
स्थानीय प्रतिनिधि और पूर्व प्रमुख मनोज मंडल कहते हैं कि इस मौके पर लोग इमामबाड़े की साफ-सफाई कर रंग-रोगन करते हैं। रंगीन निशान खड़ा कर चारों तरफ केला के पेड़ रोपते हैं।
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गांव के लगभग 5 किलोमीटर दूर तक कोई मुस्लिम आबादी नहीं
साथ ही हिन्दू ग्रामीण झरनी की थाप पर मरसिया भी गाते हैं। बड़ी बात यह है कि इस गांव के लगभग 5 किलोमीटर दूर तक कोई मुस्लिम आबादी नहीं है। मगर लोग आज भी अपने पूर्वजों से किए वादे को निभाते हुए इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं।
यह सिर्फ कटिहार ही नहीं, बल्कि बिहार के इस हिंदू मोहर्रम की चर्चा दूर-दूर तक है। लोग इसे हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल मानते हैं।
साभार – NEWS18