श्रीकांत बताते हैं कि जब जीवनभर साथ निभाने की बात आई तो प्रेमिका ने साथ छोड़ दिया. जाहिर है गुस्सा तो बहुत आया, तकलीफ भी बहुत हुई। लेकिन जिंदगी रोते-बिसुरते नहीं गुजारी जा सकती। मैंने इसी दर्द के साथ जीना तय किया और इसे ही अपनी ताकत बनाने की बात सोची। तभी मन में ख्याल आया कि दुकान का नाम ही रख दिया जाए ‘बेवफा चाय दुकान’।
बॉलीवुड फिल्म ‘हम दोनों’ में देवानंद गुनगुनाते दिखते हैं ‘मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया…’ पर आपको अपनी फिक्र और अपना गम धुएं में उड़ाने की जरूरत नहीं, चाय की चुस्कियों में घोंट जाएं।
जी हां, सासाराम में इश्क में नाकाम हुए शख्स ने चाय की दुकान खोल ली है और नाम रखा है ‘बेवफा चाय दुकान’। दरअसल, यह व्यवसाय का फंडा भी है और जीवन जीने की कला भी। श्रीकांत नाम है इस चायवाले का।
उन्होंने अपना ठीहा नेशनल हाइवे पर ताराचंडी मंदिर के पास लगा दी है। वे बताते हैं कि जब जीवनभर साथ निभाने की बात आई तो प्रेमिका ने साथ छोड़ दिया।
जाहिर है गुस्सा तो बहुत आया, तकलीफ भी बहुत हुई। लेकिन जिंदगी रोते-बिसुरते नहीं गुजारी जा सकती। मैंने इसी दर्द के साथ जीना तय किया और इसे ही अपनी ताकत बनाने की बात सोची। तभी मन में ख्याल आया कि दुकान का नाम ही रख दिया जाए ‘बेवफा चाय दुकान’।
कुल्हड़वाली चाय
‘बेवफा चाय दुकान’ में चाय कुल्हड़ में दी जाती है। श्रीकांत का कहना है कि प्रेम में जब ‘यूज एंड थ्रो’ का अहसास हुआ तो लगा कि इसी फंडे का इस्तेमाल दुकान के लिए किया जाए।
एक तो कि बरतन मांजने का झंझट नहीं रहेगा, दूसरा कि कुल्हड़ की चाय का क्रेज अलग होता है। लोग पसंद करेंगे। जाहिर तौर पर ग्राहकों को कुल्हड़ की चाय पसंद आती है। वे कुल्हड़ का इस्तेमाल करते हैं और फिर कूड़े में फेंक देते हैं, तो इससे मुझे अजीब सी संतुष्टि मिलती है।
नाम का बड़ा फायदा मिला
श्रीकांत बताते हैं कि इस नाम का बड़ा फायदा हुआ। एक तो नाम पढ़कर लोग कौतूहलवश दुकान पर आते हैं। भले चाय न पीने की इच्छा हो पर एकाध चाय तो पी ही लेते हैं।
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चाय की चुस्कियों के बीच ग्राहक उनकी प्रेम कहानी भी सुनना चाहते हैं। लोगों को अपनी कहानी बताकर मन तो हल्का होता ही है, चाय की बिक्री से जेब भी भारी हो जाती है। श्रीकांत बताते हैं कि दिलजलों को उनके ठीहे पर 10 रुपये में स्पेशल चाय पिलाई जाती है।
संपर्कों का दायरा बढ़ रहा
वे बताते हैं कि उनका ठीहा चल निकला है। ठीक-ठाक ग्राहक आने लगे हैं। कुछ ग्राहक ऐसे भी होते हैं जिनके लिए मेरी प्रेम कहानी मनोरंजन जैसी होती है और कई दिलजले ऐसे भी होते हैं जो मेरी तकलीफ में अपनी तकलीफ तलाशते हैं।
कहानी सुनकर दुखी होते हैं और चाय पीते-पीते अपनी कहानी भी सुना जाते हैं। मेरे लिए खास बात यह है कि इस नाम की वजह से ग्राहक आ जाते हैं।
कुछ ग्राहक कहानी सुनकर घनिष्टता दिखाते हैं और कुछ अपना मनोरंजन करके निकल जाते हैं। मेरे संपर्कों का दायरा भी बढ़ रहा है।
जीने का नया नजरिया मिला
श्रीकांत बोलते हैं कि मैं अपनी टीस को अब सूखने नहीं देना चाहता, अपने मन के जख्म को हरा रखना चाहता हूं। यह दर्द मुझे अब तकलीफ नहीं ताजगी देने लगा है। जीवन जीने का एक नया नजरिया दिखने लगा है और यही तकलीफ तो मेरे ठीहे को जमाने का जरिया बनी।