पूर्णिया: एक दिन रात को पत्नी ने कहा कि आप मेरे बगल में सोइये, मैं सुहागन मरूंगी। मैं समझ नहीं सका कि पत्नी आखिर इस तरह की बातें क्यों कर रही है। मैंने जवाब दिया कि ऐसा कभी नहीं होगा, दोनों साथ जिएंगे और साथ में ही मरेंगे। सुबह जब आंख खुली तो पत्नी दुनिया को अलविदा कह चुकी थी। पूर्णिया के रूपौली के रहने वाले 90 वर्षीय बुजुर्ग भोलानाथ आलोक (Bholanath of Purnea) अपनी कहानी बताते हुए आज भी भावुक हो जाते हैं।
भोलानाथ आलोक कहते हैं कि, पत्नी की मौत के बाद मेरी दुनिया ही खत्म हो चुकी थी। लेकिन बच्ची के लिए मुझे जीना था। इसलिए मैंने अपनी पत्नी की अस्थियों को विसर्जित नहीं किया बल्कि पिछले 32 साल (kept asthi kalash of wife for 32 years in Purnea) से संभालकर रखा है, ताकि मौत के बाद हम दोनों साथ में इस दुनिया से विदा हों। मेरी अंतिम इच्छा है कि मौत के बाद अंतिम यात्रा के समय ये अस्थियां मेरे सीने से लगी हों।
भोलानाथ (90 year old litterateur Bholanath Alok from Purnea) ने कहा, ‘हमारी शादी कम उम्र में हो गई थी और तभी हम दोनों ने साथ जीने-मरने की कसमें खाई थी। वह (पत्नी) तो चली गई लेकिन मैं मर नहीं सका। मैंने उनकी यादें संजोकर रखी हैं। उन्होंने घर के बगीचे में एक पेड़ पर लटकी पोटली दिखाते हुए कहा कि 32 सालों से पत्नी की अस्थियों को टहनी से टांगकर सुरक्षित रखा है. ‘मेरी पद्मा (पत्नी का नाम) भले ही नहीं हैं, लेकिन ये अस्थियां उनकी यादें मिटने नहीं देतीं हैं। जब भी किसी परेशानी में होता हूं, तो लगता है वह यहीं हैं। बच्चों को भी कह रखा है कि मेरी अंतिम यात्रा में पत्नी की अस्थियों की पोटली साथ ले जाना और चिता पर मेरी छाती से लगाकर ही अंतिम संस्कार करना।
“अपने वादे को निभाने के लिए कोई और तरीका नहीं दिखा ,इसलिए मैंने ये तरीका अपनाया है। प्रतिदिन इन अस्थियों को देखता हूं तो लगता है कि पद्मा मेरे साथ है। वो मुझसे बातें भी करती है। मेरे बच्चे भी इस पेड़ और उसमें टंगी इस पोटली का बहुत सम्मान करते हैं। कोई भी शुभ काम होने पर हम पेड़ के पास जाकर आशीर्वाद लेते हैं। शादी का निमंत्रण कार्ड भी रखते हैं। मेरी बेटी कहीं भी जाने से पहले अपनी मां का आशीर्वाद लेना नहीं भूलती है।”- भोलानाथ आलोक, बुजुर्ग साहित्यकार
पत्नी की बात करने पर आज भी भोलानाथ की आंखों से आंसुओं के रूप में पत्नी का प्रेम छलक पड़ता है। वे बताते हैं, ‘पद्मा का भगवान पर बड़ा विश्वास था। हम दोनों की जिंदगी बढ़िया से कट रह थी लेकिन करीब 32 साल पहले पत्नी बीमार हुईं। इलाज और दवा में कोई कमी नहीं हुई, पर कहते हैं ना कि अच्छे व्यक्ति को भगवान जल्दी अपने पास बुला लेते हैं। भगवान ने पद्मा को भी बुला लिया और पद्मा अपना वादा तोड़कर चली गई। इसके बाद मैंने अपनी बच्ची की परवरिश की।
भोलानाथ गर्व से कहते हैं, ‘इस सामाजिक जीवन के उधेड़बुन में भी मैं पद्मा को नहीं भूला। पत्नी के साथ मर तो नहीं सकता था। उनके छोड़ जाने का गम मैं अब तक नहीं भूल पाया। बगीचे के एक आम के पेड़ में उनकी अस्थियां एक कलश में समेट कर रखा हूं। वहीं नीचे तुलसी का पौधा लगा हुआ है।
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उन्होंने कहा कि वे आज भी प्रतिदिन अपनी पत्नी को याद करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। आज की युवा पीढ़ी वैलेंटाइन डे (Valentine Day Special) तो मनाती है लेकिन उन्हें सच्चा प्यार क्या होता है यह सीखना चाहिए। भोलानाथ आलोक के नाती ने कहा कि, उनके नाना पिछले 32 सालों से रोज यहां आकर अस्थि कलश को छूकर प्रणाम करते हैं और उसकी पूजा करते हैं। वहीं साहित्यकार गोविंद का कहना है कि भोलानाथ आलोक का अपनी पत्नी के प्रति अगाध और आत्मीय प्रेम है। वह हम सबों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उन्होंने कहा कि भोलानाथ आलोक का कहना है कि वह अपनी पत्नी का अस्थि कलश अपने सामने रखे हुए हैं ताकि वह उस प्रेम को प्रतिदिन महसूस कर सकें।
आज भोलानाथ की यह प्रेम कहानी लोगों के लिए चर्चा का विषय बनी हुई है। भोलानाथ गर्व से कहते हैं, ‘यहां ना सही परंतु ऊपर जब पद्मा से मिलूंगा, तब यह तो बता सकूंगा कि मैंने अपना वादा निभाया।’ उन्होंने कहा कि पृथ्वीलोक में हम दोनों साथ जी भले ही नहीं सके पर साथ मरने का सुकून तो जरूर मिलेगा।
भोलानाथ के दामाद अशोक सिंह कहते हैं कि, यह प्रेम का अनूठा उदाहरण है। उन्होंने कहा कि उनकी अंतिम इच्छा हमलोग जरूर पूरी करेंगे। पानी, धूप से बचने के लिए इस कलश को प्लास्टिक और फिर ऊपर से कपड़े से बांधकर रखा गया है। पत्नी के प्रति इनका प्रेम देखकर हम सभी भावुक हो जाते हैं। आज की युवा पीढ़ी को इस प्रेम कहानी से सीख लेने की जरूरत है,जहां रिश्तों के मायने समयानुसार बदल जाते हैं।